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गर्म हवाएँ, इत-उत डोलें
जीवन में भी आग
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सूखे सारे कुएँ पड़े हैं
पानी का है टोटा
भूखे मरे किसान
रुपैया दिन दिन पड़ता छोटा
भारी पड़ा जुटाना सबको
महँगा आटा- साग
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गर्म हवाएँ, इत-उत डोलें
जीवन में भी आग
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त्यौहारों वाले दिन भी तो
आएँगे जाएँगे
सीमित आमदनी में कैसे
खर्च निभा पाएँगे
महँगाई में रुपया डूबा
डॉलर पहने पाग
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गर्म हवाएँ, इत-उत डोलें
जीवन में भी आग
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एक तरफ आधार चल रहा
दूजी नोट की बंदी
दो के बीच गरीब फँस गया
जीवन होता छिंदी
कैशलेस की चली हवाएँ
दुनिया भागमभाग
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गर्म हवाएँ, इत-उत
डोलें
जीवन में भी आग
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- सरस्वती माथुर |