पत्र व्यवहार का पता

अभिव्यक्ति तुक-कोश

१७. ४. २०१८

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दिन भट्ठी सा

 

 

दिन भट्ठी सा
दहक रहा है रातें जलकर राख हों जैसे
दरकी धरती माँ की छाती खुली
शम्भु की आँखें जैसे
1
सन सन सन्नाटे का चाबुक
रोज धूप का चढ़ता पारा
ग़र्म हवाओं के तांडव से
आतंकित है दिन बेचारा
चाँद लगे सूरज का भाई
कटती नहीं रात है ऐसे
करवट लेती उमस और भी
ढीठ हुई पुरवाई जैसे
1
हवा बवंडर आँधी बन कर
उड़ा गई उम्मीद के कतरे
अख़बारों में छपी थी कल भी
आगज़नी की झुलसी ख़बरें
सूरज ज्वाला मुखी उगलता
दौड़ रहा सड़कों पर कैसे
मन सैलानी ढूँढ रहा है
उत्तर जलते जलते फिरसे
1
व्याकुल ताल तलैया पोखर
रही दिवस भर चिड़िया प्यासी
मीन जली पानी के भीतर
नदी निर्जला हुई उपासी
सूखे पत्ते झरते झर झर
खाल तने की छीले कैसे?
जेठ दुपहरी काल कूट सी
हरियाली सब लीले ऐसे
1
- रंजना गुप्ता

इस माह


ग्रीष्म ऋतु के स्वागत में
महोत्सव मनाएँगे
और पूरे माह हर रोज एक नया
ग्रीष्म गीत मुखपृष्ठ पर सजाएँगे।
रचनाकारों और पाठकों से आग्रह है
आप भी आएँ
अपनी उपस्थिति से उत्सव को सफल बनाएँ
तो देर किस बात की
अपनी रचनाएँ प्रकाशित करना शुरू करें
कहीं देर न हो जाय
और ग्रीष्म का यह उत्सव
आपकी रचना के बिना ही गुजर जाए

ग्रीष्म महोत्सव की रचनाओं में-

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अनूप अशेष

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आभा सक्सेना दूनवी

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कल्पना मनोरमा

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कल्पना रामानी

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कुमार रवीन्द्र

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कृष्ण भारतीय

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गरिमा सक्सेना

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चन्द्रप्रकाश पाण्डे

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देवव्रत जोशी

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देवेन्द्र सफल

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प्रदीप शुक्ल

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बसंत कुमार शर्मा

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ब्रजनाथ श्रीवास्तव

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मधु शुक्ला

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मलखान सिंह सिसौदिया

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रंजना गुप्ता

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रविशंकर मिश्र रवि

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राजेन्द्र वर्मा

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राहुल शिवाय

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विनोद निगम

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शशिकांत गीते

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शशि पुरवार

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शिवानंद सिंह सहयोगी

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शीलेन्द्र सिंह चौहान

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सीमा अग्रवाल

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सुरेन्द्र कुमार शर्मा

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सुरेन्द्रपाल वैद्य

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अजित कुमार

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अश्विन गांधी

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मधु संधु

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ओमप्रकाश नौटियाल

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परमजीतकौर रीत

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी