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कोई चिड़िया
नहीं बोलती |
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ईंट–पत्थरों की जुबान है
ऊँचे बड़े मकानों में
कोई चिड़िया नहीं बोलती
सूने रोशनदानों में
कुछ छीटें मेरी यादों के
कुछ धब्बे सबके
धूप–छाँह
हो जाने वाले
रिश्ते हैं अब के,
आँगन वाली गंध नहीं हैं
धूप भरी
दालानों में
आँखों का पानी खोने का
भीतर खेद नहीं
शीशे की खिड़की
के बाहर
उछली गेंद नहीं,
तपता–सा एहसास जेब का
उँगली की
पहचानों में
- अनूप अशेष |
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इस माह
ग्रीष्म ऋतु के स्वागत में
महोत्सव मनाएँगे
और पूरे माह हर रोज एक नया
ग्रीष्म गीत मुखपृष्ठ पर सजाएँगे।
रचनाकारों और पाठकों से आग्रह है
आप भी आएँ
अपनी उपस्थिति से
उत्सव को सफल बनाएँ
तो देर किस बात की
अपनी रचनाएँ प्रकाशित करना शुरू करें
कहीं देर न हो जाय
और ग्रीष्म का यह उत्सव
आपकी रचना के बिना ही गुजर जाए
पता ऊपर दिया ही गया है
ईमेल करें या हमारे फेसबुक समूहों में रचना प्रकाशित
करें...
गीतों में-
छंदमुक्त
में-
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अजित
कुमार |
पिछले माह
होली
के अवसर पर
गीतों में-
अनिल कुमार वर्मा,
अनिल कुमार मिश्र,
अमिताभ त्रिपाठी,
अलका प्रमोद,
अवनीश त्रिपाठी,
आकुल,
उमा प्रसाद लोधी।
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