मन धरती पर
सावन बरसे
उर सागर में पुलक समाई
सतरंगी हो जाये दुनिया
तभी लगे है होली आई
द्वेष न सेंध लगाने पाये
नेह भाव से मन हो संचित
काँटा नहीं चुभे अब कोई
हर पल हर क्षण मन हो हर्षित
चतुर्दिशा संगीत बसा हो
चले बिना मौसम पुरवाई
धरती ओढ़े हरी चुनरिया
खलिहानों को धन से भर दे
नीले पीले लाल गुलाबी
सपने से मन पुलकित कर दे
जीव जन्तु सब नाचें मिलकर
देख भ्रमर कलियाँ मुस्काई
नयन खुले देखें प्रियतम को
जीवन की बगिया महकाये
रंग जाये मन प्रिय के रंग में
मन बादल सा उड़ता जाए
बिन फागुन भी मन बौराये
खुद में प्रिय की हो परछाईं
छोड़ दूर सब अपने बैठे
घर लगता है सूना सूना
नैना तकते दूर राह को
लगे कही भी मन नहिं अपना
जब बेटा बेटी घर आएँ
घर में रौनक पड़े दिखाई
- अलका प्रमोद
१ मार्च २०१८ |