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होली सा त्यौहार नहीं है

पर्व बहुत हैं
जग में लेकिन
होली सा त्योहार नहीं है
मौसम नर्म गुलाबी सा है
चलता पवन शराबी सा है
सर तक गहने हैं पेड़ों पर
इनका ठाट नवाबी सा है
सबकी गंध
मिली है सबमें
विनिमय या व्यापार नहीं है

ज्वाला ने सब पाप जलाए
चले भस्म का तिलक लगाए
यथायोग्य सम्मान किया फिर
जी भर रंग-गुलाल उड़ाए
मिला जिसे भी
गले लगाया
कोई भेद-विकार नहीं है

हर कोई कुछ खिला रहा है
ठंडाई भी पिला रहा है
जिसे चढ़ गई थोड़ी ज़्यादा
मस्ती में सर हिला रहा है
क्यों न जिये
हम जी भर इसको
आगे अब संसार नहीं है

- अमिताभ त्रिपाठी
१ मार्च २०१८

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