तीखी गर्मी तेज बगूले
धक्कड़ - धूल धुआँ
प्यासा कौआ सोच रहा है
खोदूँ कहाँ कुआँ
कंकड़ लिये भटकता दर -दर
दरके घड़े मिले
बूँद -बूँद रिस गया रेत के
टीले खड़े मिले
बैठ मुंडेरे सोच रहा है
क्या अपशकुन हुआ
चिंताओं की धूप चिलकती
फिर से शीश चढ़ी
पलक झपकते हुई ताड़ सी
मुनिया आज बड़ी
मंदिर -मंदिर माथा टेके
माँगे बाप दुआ
जितने पाँव समेटे
उतनी चादर सिकुड़ गई
सीते मन के घाव देह की
तुरपन उधड़ गई
बदल -बदल कर पाँसे,
खेले शातिर समय जुआँ
पंख लगाकर उड़ी नींद
सपने सब नखत हुए
इच्छाओं के चंचल पंछी
बगुला भगत हुए
आशायें हो गई विवशता के
हाथों बँधुआ
जप-तप पूजा, मान -मनौती
गये व्यर्थ सारे
राम नाम से उठा भरोसा
मंत्र सभी हारे
झेल रहा मौसम के तेवर
नये -नये रमुआ
- मधु शुक्ला