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धूप |
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छतरियों पर आग के
बूटे बनाती
धूप
1
घर नहीं छप्पर नहीं
सारे शहर में
सिर्फ़ सन्नाटा चुभा है
आँख भर में
देह में है दाह भर
तपकन बढ़ाती
धूप
1
छतरियों पर आग के
बूटे बनाती
धूप
1
लग रहे गोठिल
दिनों के अस्त्र सारे
कौन राई- लोन से
टुटके उतारे
खाल खुरचे दे रही
ये चिलचिलाती
धूप
1
छतरियों पर आग के
बूटे बनाती
धूप
1
- चन्द्रप्रकाश पाण्डे
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इस माह
ग्रीष्म ऋतु के स्वागत में
महोत्सव मनाएँगे
और पूरे माह हर रोज एक नया
ग्रीष्म गीत मुखपृष्ठ पर सजाएँगे।
रचनाकारों और पाठकों से आग्रह है
आप भी आएँ
अपनी उपस्थिति से
उत्सव को सफल बनाएँ
तो देर किस बात की
अपनी रचनाएँ प्रकाशित करना शुरू करें
कहीं देर न हो जाय
और ग्रीष्म का यह उत्सव
आपकी रचना के बिना ही गुजर जाए
पता ऊपर दिया ही गया है
ईमेल करें या हमारे फेसबुक समूहों में रचना प्रकाशित
करें...
गीतों में-
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अनूप
अशेष |
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आभा
सक्सेना दूनवी
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कल्पना मनोरमा |
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कल्पना रामानी |
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कुमार रवीन्द्र |
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कृष्ण भारतीय |
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गरिमा सक्सेना |
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चन्द्रप्रकाश पाण्डे |
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देवव्रत जोशी
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देवेन्द्र सफल |
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प्रदीप शुक्ल |
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बसंत
कुमार शर्मा |
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ब्रजनाथ श्रीवास्तव |
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मधु
शुक्ला
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मलखान सिंह सिसौदिया
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रंजना गुप्ता |
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राजेन्द्र वर्मा |
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राहुल शिवाय |
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शशिकांत गीते
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शिवानंद सिंह सहयोगी |
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शीलेन्द्र सिंह चौहान |
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सीमा
अग्रवाल |
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सुरेन्द्रपाल वैद्य |
छंदमुक्त
में-
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