|
उमस में |
|
मई की उमस में
अपने छोटे से कमरे की
खिड़की और दरवाजों को दिन भर
मजबूती से बन्द रखा मैंने
ताकि लू कि चपेट में ना आ जाऊँ
शाम होते ही खिड़की पर
मोटा परदा फैला दिया
कहीं मच्छर न घुस आए
पूरे शहर में दहशत है
जो बच निकले डेंगू से, वे मलेरिया में धरे गए।
फिर खाट पर मसहरी के दम-घोंटू माहौल में
जब पल भर को आँख लगी...
सपने में उभरीं
वे बचपन की सुनहरी सुबहें
जब पिता की उँगली पकड़
मैं जाता था ग्वाले के यहाँ भैंस का
धारोष्ण दूध
पीने...
वहाँ ऊपर तक भरे हुए गिलास के झाग में
कोई फँसी हुई मक्खी
यदि सरक भी जाती थी कभी पेट के भीतर
पीठ थप-थपाकर पिता कहते थे :
'कोई हर्ज नहीं।
वो तुम्हारा हाजमा ठीक रखेगी।'
इसे याद कर आज मैं भले ही मुस्कराया पर
मसहरी और परदों और खिड़कियों के पल्लों को
न जाने क्यों
तब भी
मैं नहीं खोल पाया।
- अजित कुमार
|
|
इस माह
ग्रीष्म ऋतु के स्वागत में
महोत्सव मनाएँगे
और पूरे माह हर रोज एक नया
ग्रीष्म गीत मुखपृष्ठ पर सजाएँगे।
रचनाकारों और पाठकों से आग्रह है
आप भी आएँ
अपनी उपस्थिति से
उत्सव को सफल बनाएँ
तो देर किस बात की
अपनी रचनाएँ प्रकाशित करना शुरू करें
कहीं देर न हो जाय
और ग्रीष्म का यह उत्सव
आपकी रचना के बिना ही गुजर जाए
पता ऊपर दिया ही गया है
ईमेल करें या हमारे फेसबुक समूहों में रचना प्रकाशित
करें...
गीतों में-
|
अनूप
अशेष |
|
आभा
सक्सेना दूनवी
|
|
कल्पना मनोरमा |
|
कल्पना रामानी |
|
कुमार रवीन्द्र |
|
कृष्ण भारतीय |
|
गरिमा सक्सेना |
|
चन्द्रप्रकाश पाण्डे |
|
देवव्रत जोशी
|
|
देवेन्द्र सफल |
|
प्रदीप शुक्ल |
|
बसंत
कुमार शर्मा |
|
ब्रजनाथ श्रीवास्तव |
|
मधु
शुक्ला
|
|
मलखान सिंह सिसौदिया
|
|
रंजना गुप्ता |
|
राजेन्द्र वर्मा |
|
राहुल शिवाय |
|
शशिकांत गीते |
|
शिवानंद सिंह सहयोगी |
|
शीलेन्द्र सिंह चौहान |
|
सीमा
अग्रवाल |
|
सुरेन्द्रपाल वैद्य |
छंदमुक्त
में-
| |