सुबह कंचनी दुपहर गोरी
और साँवली शाम
अरी निदाघे! लगे तुम्हारे
बड़े सलोने नाम
प्रात चहक कर सभी दिशाएँ
गातीं तेरे गीत
धूप नहाकर करने लगती
छाया के सँग प्रीत
संध्या होते मदिर पवन भी
घूमे बन खय्याम
अरी निदाघे! लगे तुम्हारे
बड़े सलोने नाम
कीर कोकिला वन अमराई
उत्सव मंगल गान
महुवा टपके गेहूँ फूले
भरे हुए खलिहान
धूप तपिश की ओढ़ चूनरी
ताक रही घनश्याम
अरी निदाघे! लगे तुम्हारे
बड़े सलोने नाम
गोधूली में गाय रँभाती
आती अपने गाँव
लौट रहे हैं अस्ताचल से
पाँखी अपने ठाँव
कौन-कौन पल बीत चुके हैं
जान न पाया नाम
अरी
निदाघे! लगे तुम्हारे
बड़े सलोने नाम
- ब्रजनाथ श्रीवास्तव