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अग्नि बाण
बरसे |
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अग्नि-बाण बरसे अम्बर से
पर श्रम जीवन दौड़
रहा है
डटा हुआ है मंगलू मोची
घने पेड़ के छायाघर में
आए आज शरण में इसकी
ज़ख्मी जूते भर दुपहर में
अर्द्ध-वसन खुद, लेकिन उनका
तन सीवन से जोड़ रहा है
अग्नि-बाण बरसे अम्बर से
पर श्रम जीवन दौड़
रहा है
देख घाट पर धरमू धोबी
ओसारे पर ननकू नाई
गुमटी पर गुरमुख पनवाड़ी
भट्टी पर हलकू हलवाई
धूप हुई हैरान, किस तरह
पलटू पत्थर तोड़ रहा है
अग्नि-बाण बरसे अम्बर से
पर श्रम जीवन दौड़
रहा है
खेत हुए हैं रेत-रेत सब
सूरज ने अर्ज़ी लौटाई
फरियादें जब रद्द हो गईं
हर क्यारी जल-जल मुरझाई
हलक खुश्क है पर हल लेकर
हरिया गात निचोड़ रहा है
अग्नि-बाण बरसे अम्बर से
पर श्रम जीवन दौड़
रहा है
- कल्पना रामानी |
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इस माह
ग्रीष्म ऋतु के स्वागत में
महोत्सव मनाएँगे
और पूरे माह हर रोज एक नया
ग्रीष्म गीत मुखपृष्ठ पर सजाएँगे।
रचनाकारों और पाठकों से आग्रह है
आप भी आएँ
अपनी उपस्थिति से
उत्सव को सफल बनाएँ
तो देर किस बात की
अपनी रचनाएँ प्रकाशित करना शुरू करें
कहीं देर न हो जाय
और ग्रीष्म का यह उत्सव
आपकी रचना के बिना ही गुजर जाए
पता ऊपर दिया ही गया है
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गीतों में-
छंदमुक्त
में-
छंद में-
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ओमप्रकाश नौटियाल |
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परमजीतकौर रीत |
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