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गये बदलने
कपड़े पत्ते |
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ग्रीष्मकाल का मिला निमंत्रण
गये बदलने कपड़े पत्ते
अलबत्ते !
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हवा खूँट में बाँध रही है
गरमी के खोंइछा का चावल
लाल लिली के लब मुसकाते
सजते हैं अड़हुल के रावल
पेड़ों की छाया के नीचे
बचपन जो चुनते हैं गत्ते
फेंटेंगे सब अट्ठे-सत्ते
अलबत्ते !
1
बदला मौसम का मिजाज अब
ऋतुओं ने नगरी बदली है
सुबह-सुबह सरदी का पाहुर
दोपहरी गगरी बदली है
पानी की टंकी पर लटके
मधुमखी के मधु के छत्ते
तह करते हैं कपड़े-लत्ते
अलबत्ते !
1
नदियों के पानी की लहरों
में कल-कल का राग नचा है
साँसों की धोबिन पनघट पर
धोती जो कुछ दाग बचा है
पधरातीं खुशियाँ आंगन में
कटी फसल के स्वस्तिक खत्ते
पाये नैन मनोहर दत्ते
अलबत्ते !
1
शिवानन्द सिंह 'सहयोगी' |
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इस माह
ग्रीष्म ऋतु के स्वागत में
महोत्सव मनाएँगे
और पूरे माह हर रोज एक नया
ग्रीष्म गीत मुखपृष्ठ पर सजाएँगे।
रचनाकारों और पाठकों से आग्रह है
आप भी आएँ
अपनी उपस्थिति से उत्सव को सफल बनाएँ
तो देर किस बात की
अपनी रचनाएँ प्रकाशित करना शुरू करें
कहीं देर न हो जाय
और ग्रीष्म का यह उत्सव
आपकी रचना के बिना ही गुजर जाए
गीतों में-
छंदमुक्त
में-
छंद में-
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ओमप्रकाश नौटियाल |
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परमजीतकौर रीत |
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