क्रुद्ध हुआ है सूर्य गगन
में
उष्ण हुआ धरती का मन
पेड़ सभी मिट रहे धरा से
तुनुकमिजाजी मनु बन बैठे
तनिक न चिंता जीव-जगत की
सब अपने-अपने में ऐंठे
प्रगति-पंथ ने क्या लूटा है
करना होगा यह चिंतन
क्रुद्ध हुआ है सूर्य गगन
में
उष्ण हुआ धरती का मन
साल-साल दर बढ़ती जाती
सही न जाती है अब गर्मी
फिर भी कोई नहीं चेतना
मानव चित हो गया विधर्मी
स्वार्थ-सिद्धि को कंटक बोए
अब भी तो हो सही जतन
क्रुद्ध हुआ है सूर्य गगन
में
उष्ण हुआ धरती का मन
ऐसे ही हालात बुरे हैं
उसपे तपकर फसल जल रही
घाव बहुत गंभीर मिलेंगे
अगर न सोचा गलत क्या सही
जीवन रह पाए धरती पर
करें समस्या का मंथन
क्रुद्ध हुआ है सूर्य गगन
में
उष्ण हुआ धरती का मन
- रंजन कुमार झा |