उतरा पानी
हैंडपम्प का
हत्था बोले चर-चर
बिन पानी के व्याकुल धरती
प्यासी तड़प रही है
मिट्टी में से
दूब झाँकती
फिर भी पनप रही है
किन्तु विषम जलवायु में भी
आस फहरती फर-फर
उतरा पानी हैंडपम्प का
हत्था बोले चर-चर
सूरज चाहे लावा उगले
अंधड़ तन को छीले
उगते आये हैं
मरुथल में
जिद्दी झाड़ कँटीले
आखिर लायी हवा गाँव में
गगरी पानी भर-भर
उतरा पानी
हैंडपम्प का
हत्था बोले चर-चर
भले पसीने में लथपथ है
त्वचा कान के पीछे
भीतर घुसकर
लू की लपटें
लंबी साँसे खींचे
फिर भी गिरती हैं नयनों से
देखो खुशियाँ झर-झर
उतरा पानी
हैंडपम्प का
हत्था बोले चर-चर
- योगेन्द्र प्रताप मौर्य