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लगता ऋतु
कुछ बदली सी |
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नमी हवा से विलग हुई
तपिश ज़रा सी सजग हुई
लगता रुत कुछ बदली सी
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शीत भी थोड़ा बिदक गया
मुनमुन करता झिड़क गया
सूरज ने जब आँख तरेरी
ओढ़ दुशाला खिसक गया
ठिठुरन देह से अलग हुई
लगता रुत कुछ बदली सी
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तपिश ज़रा सी सजग हुई
लगता रुत कुछ बदली सी
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छत से झाँके धूप घनी
फिरे दोपहरी बनी-ठनी
पेड़ तले सुस्ताए छाँव
तिरछी किरनें तनी-तनी
लू की घुड़की खड़ग हुई
लगता रुत कुछ बदली सी
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तपिश ज़रा सी सजग हुई
लगता रुत कुछ बदली सी
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अमराई बौराई सी
लदी-फदी तरुणाई सी
अन्न-धन भरती भंडारन
सेठानी भरमाई सी
कुंडी-कुंजी सलग हुई
लगता रुत कुछ बदली सी
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तपिश ज़रा सी सजग हुई
लगता रुत कुछ बदली सी
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- शशि पाधा
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इस माह
ग्रीष्म महोत्सव के
अवसर पर
गीतों में-
छंदमुक्त
में-
छंदों में -
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