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गरमी में सब
बुरा नहीं है |
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पकने लगे
खेत में गेहूं
औ' पेड़ों पर आम
दुपहर आग बबूला होती
मुस्काती है शाम
सुबह सबेरे
हवा गा रही
सुर में मीठे बोल
ढरक गया है पूरब में
थोड़ा सिंदूरी घोल
निकले घर से पंछी, सबको
अपने अपने काम
नई किताबें
नए स्कूल में
नए - नए हैं लोग
नई क्लास में घबराहट का
है जी भर संयोग
टीचर जी ने पूछ लिया है
तभी अचानक नाम
नाना के
घर के पिछवाड़े
पके हुए हैं बेल
टीना मौसी खेल रही
आँगन में लंगड़ी खेल
दौड़ रही है नाव लगाकर
सपनों वाले पाल
- प्रदीप शुक्ल |
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इस माह
ग्रीष्म महोत्सव के
अवसर पर
गीतों में-
छंदमुक्त
में-
छंदों में -
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ओमप्रकाश नौटियाल
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परमजीतकौर रीत
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अंजुमन में-
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