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जाने कब
पीछा छूटेगा |
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मन तपा तो देह ढरकी नीर सी
सुधि तुम्हारी नेह बन
गलने लगी
सुर्ख सेमल
खेत का साधू हुआ
दे रहा दिल खोल मुँह-माँगी दुआ
छाँव ने जादू किया तो दोपहर
बाँस-वन में साँझ सी
पलने लगी
मन तपा तो देह ढरकी नीर सी
सुधि तुम्हारी नेह बन
गलने लगी
खेलती लू
अनमनाये तीर से
गर्द, आँधी बाँध उर की पीर से
सूखने संयम लगा तब ताल सा
जब जवानी की नदी
ढलने लगी
मन तपा तो देह ढरकी नीर सी
सुधि तुम्हारी नेह बन
गलने लगी
- उमा प्रसाद लोधी |
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इस माह
ग्रीष्म महोत्सव के
अवसर पर
गीतों में-
छंदमुक्त
में-
छंदों में -
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ओमप्रकाश नौटियाल
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परमजीतकौर रीत
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अंजुमन में-
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