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जाने कब
पीछा छूटेगा |
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जाने कब पीछा छूटेगा
जालिम गर्मी से
रोम रोम तरबतर पसीना
थल थल बहता है
अंदर बाहर कहीं जरा भी
चैन न मिलता है
गर्म हवायें दहा रहीं
तन मन बेरहमी से
जाने कब पीछा छूटेगा
जालिम गर्मी से
बरस रहीं अंगार दनादन
बजमिजाज किरणें,
पशु पझी बेहाल, हाँफतीं
जंगल की हिरणें,
लगा ठहाके मौसम हँसता
है बेशर्मी से
जाने कब पीछा छूटेगा
जालिम गर्मी से
आज नहीं तो कल बरसेगा
निश्चित ही पानी
पियरायें तरूओं की रंगत
फिर होगी धानी
बाज नहीं आता फिर भी
सूरज हठधर्मी से
जाने कब पीछा छूटेगा
जालिम गर्मी से..
- शीलेन्द्र सिह चौहान |
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इस माह
ग्रीष्म ऋतु के स्वागत में
महोत्सव मनाएँगे
और पूरे माह हर रोज एक नया
ग्रीष्म गीत मुखपृष्ठ पर सजाएँगे।
रचनाकारों और पाठकों से आग्रह है
आप भी आएँ
अपनी उपस्थिति से उत्सव को सफल बनाएँ
तो देर किस बात की
अपनी रचनाएँ प्रकाशित करना शुरू करें
कहीं देर न हो जाय
और ग्रीष्म का यह उत्सव
आपकी रचना के बिना ही गुजर जाए
गीतों में-
छंदमुक्त
में-
छंद में-
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ओमप्रकाश नौटियाल |
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परमजीतकौर रीत |
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