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१
बस्ता-भर टेसू लिये, फूला फिरे पलाश।
साथी! अपने द्वार हैं, ग्रीष्म संग अवकाश ।।
ग्रीष्म संग अवकाश, करें अगवानी आओ ।
ओ! गुलमोहर, बेल!, अरी! चंपा, सज जाओ ।।
रजनीगंधा साथ, आज महका दें रस्ता ।
रूठो नहीं शिरीष!, चलो, सँग लेकर बस्ता ।।
२
टाबर-टोली खुश बड़ी, धरा न पड़ते पाँव ।
गर्मी की छुट्टी मिली, घूमेंगे अब गाँव ।।
घूमेंगे अब गाँव, शहर से करके कुट्टी ।
बैठ प्रकृति की गोद, मनायेंगे सब छुट्टी ।।
होगा अपना राज, शहँशाह हम ज्यों बाबर ।
मस्ती अब भरपूर, करेंगे सोचें टाबर ।।
३
टाबर-टोली कब करे, गर्मी की परवाह ।
खेल-खेल बस खेल ही, उनकी रहती चाह ।।
उनकी रहती चाह, मचायें उद्धम जमकर ।
कभी तरू की डाल, ताल में कभी तैरकर ।।
वृक्ष बने मलखंभ, और जोहड़ हमजोली ।
गर्मी को यूँ आँख, दिखाती टाबर टोली।।
-परमजीत कौर 'रीत' |