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गर्मी के
दिन |
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बिना बुलाये
मेहमानों से आये
गर्मी के दिन
चार दिनों में
मेहमानों का क़ब्ज़ा
घरों-घरों में
सभी दिशाएँ
त्राहिमाम् करतीं हैं
आर्त स्वरों में
ऐसे में अब
क्या जीना, क्या मरना
पानी के बिन
बिना बुलाये
मेहमानों से आये
गर्मी के दिन
भाँति-भाँति की
अग्नि छिपाने वाले
स्वागतेय हैं
यक्षप्रश्न है
अग्नि लगाने वाले
क्यों अजेय हैं
मुक्ति भी नहीं
अभी चुकाना बाक़ी
श्वासों का रिन
बिना बुलाये
मेहमानों से आये
गर्मी के दिन
- राजेन्द्र वर्मा |
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इस माह
ग्रीष्म महोत्सव के
अवसर पर
गीतों में-
छंदमुक्त
में-
छंदों में -
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ओमप्रकाश नौटियाल
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परमजीतकौर रीत
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अंजुमन में-
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