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जितना ताप
दिया जीवन ने |
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जितना ताप
दिया जीवन ने
भला जेठ क्या दे पाएगा
उम्र बसंती पर कोने में
पड़ी हुयी है मुरझाई सी
उल्लासों की लाल पाँखुरी
साँसे ओढ़े उकताई सी
अंतर में ठहरे
हिमनद को
मौसम कैसे पिघलाएगा
तन को समिधा सा दहका कर
सुबह-शाम फिरना पड़ता है
मन को फिर इस हवन कुंड में
धू धू कर जलना पड़ता है
ज्वालाओं की
नित्य कथाओं
को सूरज क्या सुलगाएगा
रोज़ सवालों की पोथी ले
मास्टरनी सी आ जाती है
हर जवाब को ग़लत बता कर
हथेलियाँ चटका जाती है
मजबूरी की
संटी जितनी
जलन ग्रीष्म कैसे लाएगा
- सीमा अग्रवाल |
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इस माह
ग्रीष्म महोत्सव के
अवसर पर
गीतों में-
छंदमुक्त
में-
छंदों में -
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ओमप्रकाश नौटियाल
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परमजीतकौर रीत
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अंजुमन में-
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