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उतनी गर्मी
नहीं धूप में |
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उतनी गरमी नहीं धूप में
जितनी गरम मलाई है
हरे चमकते विटपों ने ही
यह पंक्ति लिखवाई है
1
ढूँढें चलो कहाँ है पछवा
कहाँ छुपी है पुरवाई
मन का आदिम उत्सव थामे
थाहें मानस- गहराई
प्रश्नों का उत्तर देने को
आतुर रामसलाई है
1
कल-छल करते कूलों से
फिर कोई अद्भुत राग सुनें
चिड़ियों की चहचह में अपने
अब का कल का भाग सुनें
चूल्हे से पूछें क्यों उसने
रोटी नहीं पकाई है
1
मौसम सम्मानित होता है
जब जब उसको जीते हैं
ओठों में बस बस जाए
ऐसा ही अमृत पीते हैं
बाक़ी जीवन तो थकान की
टूटी हुई जम्हाई है
1
- अश्विनी कुमार विष्णु |
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इस माह
ग्रीष्म महोत्सव के
अवसर पर
गीतों में-
छंदमुक्त में-
छंदों में -
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