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हाल हुआ
बेहाल |
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अड़तालिस पर पहुँचा पारा
हाल हुआ बेहाल
गर्म हवा के चले थपेड़े
सही न जाये पीर
गर्मी नें सबके पैरों में
बाँधी है जंजीर
हरे रंग का हम भी बाँधे
आँगन में तिरपाल
अड़तालिस पर पहुँचा पारा
हाल हुआ बेहाल
सूख गई पौधों की क्यारी
मुरझाए हैं फूल
धूप बदन पर ऐसे चुभती
जैसे कोई शूल
हँसता है हम सब पर सूरज
बजा बजाकर गाल
अड़तालिस पर पहुँचा पारा
हाल हुआ बेहाल
लगे अँगीठी जैसी दुपहर
गर्म तवे सा आँगन
जेठ महीना रस्ता देखें
कब आएगा सावन
जाने कब बदलेगा सूरज
अपनी तिरछी चाल
अड़तालिस पर पहुँचा पारा
हाल हुआ बेहाल
- रमा प्रवीर वर्मा |
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इस माह
ग्रीष्म महोत्सव के
अवसर पर
गीतों में-
छंदमुक्त
में-
छंदों में -
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