जंगल की अलसाई पलकों में
चढ़ती जेठ दुपहरी
दग्ध
दिवस
ने फैलाई जब
धो कर धूप सुनहरी
पुरवाई पीपल के नीचे
बैठी बैठी ऊँघे
महुआ के तपते तन-मन
की
गन्ध हवा संग गूँधे
अल्हड़ बल खाती जलधारा
होती जाये इकहरी
दग्ध
दिवस
ने फैलाई जब
धो कर धूप सुनहरी
अंबवा
के
पत्तो में
कोयल
वनबाला सी
गाए
धीमे धीमे अंगारो सा
किंशुक मन दहकाये
अंबर के नीले तन को
तकती
है संध्या
ठहरी
दग्ध
दिवस
ने फैलाई जब
धो कर धूप सुनहरी
अमलतास के कनक कुसुम से
अपनी देह सजाई
गुलमोहर ने कपड़े पहने
धरती भी मुस्काई
रवि किरणों
की स्वर्ण प्रभा में
फुदके दूर
गिलहरी
दग्ध
दिवस
ने फैलाई जब
धो कर धूप सुनहरी
- राकेश सुमन