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ग्रीष्म काल |
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लगे सूखने ताल तलैया
ग्रीष्म काल ने दस्तक दी है
सघन छाँव सबके मन भाती
धूप बहुत व्याकुल कर जाती
शीतलता की चाहत मन में
चुपके चुपके जगह बनाती
किन्तु सुबह की वेला में तो
हल्की हल्की ठंडक भी है
पाखी भी अब लगे लौटने
दूर देश फैलाकर डैने
कुछ भी हो लेकिन लगते प्रिय
अपने ही घर ठौर ठिकाने
पूरी शक्ति लगाते हर क्षण
मंजिल पाने की जल्दी है
नमी सूखती सभी जगह की
सुन्दर फूलों और कलियों की
स्मृति में आ जाती सहसा तब
कलकल धुन बहती नदियों की
असर दिखाती वासंती ॠतु
खिले पुष्प और फसल पकी है
कभी राह पर चलते चलते
तप्त धरा की ओर देखते
चाह यही छितराए बादल
क्यों नहीं सूरज को ढक लेते
सब ऋतुओं की अपनी महिमा
गर्मी भी तो अधिकारी है
- सुरेन्द्रपाल वैद्य |
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इस माह
ग्रीष्म महोत्सव के
अवसर पर
गीतों में-
छंदमुक्त
में-
छंदों में -
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ओमप्रकाश नौटियाल
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परमजीतकौर रीत
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अंजुमन में-
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