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आ गई गर्मी,
तपे धरती-गगन-तन-मन
सूर्य पहले से अधिक
तपने लगा है अब
मान लो जैसे अधिक
खटने लगा है अब
ताप से व्याकुल हवाएँ
दौड़ती सरपट
प्रौढ़ होता जा रहा है
ग्रीष्म का यौवन
है कहीं ए. सी. कहीं पंखा
कहीं कूलर
तो कहीं तन स्वेद से
लथपथ पड़ा तपकर
सूर्य शोषक हो गया है
दीन लोगों का
मित्र सम है ग्रीष्म
जिसके पास है साधन
प्यास नव निर्माण की
ऐसी जगी हममें
खो रहे संसाधनों को
प्रगति के भ्रम में
सूखते नद, ताल, पोखर,
सूखती धरती
बदलते पर्यावरण से
है दुखी जीवन
- राहुल शिवाय |