इसे बचाकर रखना है ये रंगत है अनमोल
गर्मी की दुपहर निकली मुख पर
बाँधे स्टोल
सिकुड़ी सिमटी इच्छायें भी
बहुत हुईं हलकान
आखिर कट ही गया
रजाई–कम्बल का चालान
रंगमंच पर नये–नये
मौसम का भाये रोल
गर्मी की दुपहर निकली मुख पर
बाँधे स्टोल
छत पर पानी रखा हुआ है
बिखरा दाना भी
उत्कंठित आँखें देखें
चिड़िया का आना भी
सब चुपके से होता जाये
कौन बजाये ढोल
गर्मी की दुपहर निकली मुख पर
बाँधे स्टोल
छिने नहीं आधार कि हम भी
लिंक करेंगे गाँव
बच्चों के खाते में डालेंगे
बरगद की छाँव
आने वाला कल जितना
माँगेगा, देंगे मोल
गर्मी की दुपहर निकली मुख पर
बाँधे स्टोल
– रविशंकर मिश्र “रवि”