अनुभूति में
राजेंद्र पासवान "घायल"
की रचनाएँ—
नई रचनाएँ-
अंधेरी रात में मैंने
उसका लिया जो नाम
तबस्सुम के बिना
दूर से वो चाँद
बदली है
दुनिया
अंजुमन में—
अगर बढ़ेगी दिल की दूरी
आँखों से जाने उसने क्या
आदमी की भीड़ में
आदमी को और भला
आपसे कुछ कहें
उदासी के समंदर को
उसके सीने में
कभी जो बंद कीं आँखें
कभी बादल कभी बिजली
करिश्मा
किसी इंसान को
किसी की शायरी
किसी कविता को
किसी भी बात से
कुछ न करते बना
खुद में रहने की आदत
गया कोई
चाँदनी को क्या हुआ
जब से दिलों का फ़ासला
ज़मीं से आसमानों तक
जबसे पत्थर के घर
ज़मीं को छोड़कर
जो पत्थर काटकर
जो पत्थर तुमने मारा था मुझे
दर्द बनकर आईना
दिल की सदा
दिया है दर्द जो तूने
दुखों के दिन
दूर तक जिसकी नज़र
धूप राहों में
पता नहीं
पहलू में उनके
पेड़ पौधा झील झरना
भरोसा करे किस पर
मुझको किनारा मिल गया
मुद्दत के बाद
मेरे मालिक
मेरे लिए
मैं जिसको देखता हूँ
मोहब्बत की कसक जिसमें नहीं
यह सुना है
यादों ने आज
ये दरिया
वफ़ा का गीत
वफ़ा की रोशनी में हुस्न
वो इंसां भी
वो मुझसे आके मिलेगा
सितम जिसने किया मुझ पर
सुनामी के प्रति
सुरों में ताल में
हम बिखर भी गए
हर सितम हर ज़ुल्म
संकलन में-
अमलतास-
अमलतास बौराया है
शुभ दीपावली-
वहीं पे दीप जलेगा
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दीवाली हर बरस
कचनार के दिन-
जहाँ कचनार
होता है
नयनन में नंदलाल-
कन्हैया
फूले फूल कदंब-
कदंब
के पेड के पत्ते
ममतामयी-
ममता लुटाती
थी माँ |
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तबस्सुम के बिना
तबस्सुम के बिना चेहरा किसी का खिल नहीं सकता
किसी के हुस्न का जादू किसी पर चल नहीं सकता
मुहब्बत की निगाहों से जो देखेगा ज़माने को
वो नफ़्रत की धधकती आग में भी जल नहीं सकता
किसी का दर्द जब गुज़रा हदों से तब समझ पाया
बिना इसके किसी का दर्द सुर में ढल नहीं सकता
उजाला ही उजाला है जहाँ भी दिल की बस्ती में
अंधेरों का ज़रा भी ज़ोर उस पर चल नहीं सकता
दिलों का फ़ासला जब तक नहीं मिटता ज़माने में
वफ़ा का फूल दुनिया में कहीं भी खिल नहीं सकता
हमेशा नेकियों की रोशनी है जिसकी राहों में
बदी की राह पर ' घायल' कभी वो चल नहीं सकता
२ जून २०१४
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