पेड़ पौधा झील झरना
पेड़ पौधा झील झरना गुलसिताँ बाकी रहे
इन परिंदों के लिए यह आसमाँ बाकी रहे
आज आँसू की कहीं कीमत नहीं तो क्या हुआ
आँख में उसकी वफ़ा की दास्ताँ बाकी रहे
जिसके तन पे आज देखा है पसीने का लिबास
धूप में उसके उजाले का निशाँ बाकी रहे
सुबह भी बदली हुई है शाम भी बदली हुई
प्यार की खुशबू हमारे दरमियाँ बाकी रहे
फूल जैसा खिल सकेगा आज भी शेरो सुखन
है ज़रूरी आप जैसा कद्रदाँ बाकी रहे
यह अंधेरी रात 'घायल' क्या सताएगी हमें
इस अंधेरी रात में यह कहकशाँ बाकी रहे
24 जुलाई 2006
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