वो इंसां भी
वो इंसां भी किसी भगवान से कमतर नहीं होता
जो उसके हाथ में नफ़रत का यह खंजर नहीं होता
किसी की आँख में आँसू दिखाई क्यों भला देते
जो उसका पासबाँ उसके लिए पत्थर नहीं होता
किसी भी हाल में दुनिया नहीं जन्नत से कम होती
उदासी में अगर डूबा किसी का घर नहीं होता
वफ़ाओं से अगर होती अंधेरी रात भी रोशन
किसी की आबरू लुटने का कोई डर नहीं होता
कभी नफ़रत अगर 'घायल' मुहब्बत में बदल जाती
यक़ीनन आज दहशत का कहीं मंजऱ नहीं होता
१८
फरवरी २००८
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