मेरे मालिक
मेरे मालिक मेरे मौला कभी ऐसा भी कर देना
मेरे महबूब का दामन हँसी-खुशियों से भर देना
मुझे मालूम है इतना वो रूठा है न मानेगा
मगर है इल्तिजा उसको मनाने का हुनर देना
ज़रा मग़रूर है तो क्या मेरा महबूब है आख़िर
बिना माँगे बिना बोले उसे लंबी उमर देना
जिसे चाहा कभी मैंने वो मुझसे दूर है 'घायल'
बिना देखे दिखाई दे मुझे ऐसी नज़र देना
1 जून 2007 |