दुखों के दिन
दुखों के दिन मेरे सुख में ही जिसके साथ ग़ुज़रे हैं
उसी की याद में हर दिन मेरे लम्हात ग़ुज़रे हैं
मेरे खामोश अरमां को सिखाया बोलना जिसने
उसी की देह को छूकर मेरे नग्मात ग़ुज़रे हैं
कभी बातों में तल्ख़ी तो कभी जुंबिश निगाहों में
इन्हीं हालात से अब तक मेरे हालात ग़ुज़रे हैं
किसी गजरे के मुरझाए मिले हैं फूल जो मुझको
उन्हीं फूलों की ख़ुशबू से मेरे जज़्बात गुज़रे हैं
ग़ज़ल मेरी मुहब्बत की बसी जिस गाँव में 'घायल'
उसी की गलियों से होकर कई हज़रात ग़ुज़रे हैं
16 नवंबर 2007
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