किसी भी बात से
किसी भी बात से मेरी जो उसका मन दुःखा होगा
ख़फ़ा होकर तभी उसने मुझे दुश्मन कहा होगा
ज़ियादा देर तक उसको ख़फ़ा रहना नहीं आता
लबों की ख़ामोशी में फिर कोई कंपन हुआ होगा
हवाओं से सुना होगा जहाँ उसने मेरा नग़मा
वहीं गुज़रे हुए लम्हों का उत्सव मन गया होगा
किसी की अंजुमन में जब चली होगी मेरी चर्चा
बदन उसका हुलसकर ख़ुद ब ख़ुद चंदन हुआ होगा
हँसी मुमकिन नहीं 'घायल' उदासी के अँधेरों में
अँधेरा उसकी आँखों के लिए अंजन बना होगा
16 नवंबर 2007
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