कन्हैया
गोपियों की साँस में धड़कन में रहता है
बुज़र्गों की दुआओं में दुआ के धन में रहता है
उमीदों के चराग़ों से सजे गोकुल को लगता है
कन्हैया उसके हर घर में गली-आँगन में रहता है
सुदामा के लिए कान्हा भला क्या-क्या नहीं करता
कभी वो जड़ में रहता है कभी चेतन में रहता है
कन्हैया छोड़कर गोकुल कहीं भी जा नहीं सकता
अभी भी ऐसा लगता है कि वो मधुवन में रहता है
बचा लेगा मुसीबत से कन्हैया ग्वाल-बालों को
वो गिरिधर बंसीवाला है जो उनके मन में रहता है
यशोदा बिन कन्हैया के कभी भी जी नहीं सकती
कन्हैया माँ की ममता में बँधा दामन में रहता है
हवाओं में जो ख़ुशबू है कन्हैया की मुहब्बत की
गुलों को लगता है कान्हा इसी गुलशन में रहता है
रंभाती है जहाँ गइया तो लगता है लताओं को
कन्हैया राधिका के संग बृन्दावन में रहता है
कन्हैया की वफ़ओं का नहीं सानी है दुनिया में
लबों की मुस्कुराहट में कभी अँसुअन में रहता है
कन्हैया ज्ञान की आँखों से 'घायल' दिख नहीं सकता
निहारो मन की आँखों से वो तेरे मन में रहता है
-- राजेन्द्र पासवान 'घायल'
३० अगस्त २०१० |