अनुभूति में
राजेंद्र पासवान "घायल"
की रचनाएँ—
नई रचनाएँ—
किसी इंसान को
किसी की शायरी
मोहब्बत की कसक जिसमें नहीं
अंजुमन में—
अगर बढ़ेगी दिल की दूरी
आँखों से जाने उसने क्या
आदमी की भीड़ में
आदमी को और भला
आपसे कुछ कहें
उदासी के समंदर को
उसके सीने में
कभी जो बंद कीं आँखें
कभी बादल कभी बिजली
करिश्मा
किसी कविता को
किसी भी बात से
कुछ न करते बना
खुद में रहने की आदत
गया कोई
चाँदनी को क्या हुआ
जब से दिलों का फ़ासला
ज़मीं से आसमानों तक
जो पत्थर काटकर
जो पत्थर तुमने मारा था मुझे
दर्द बनकर आईना
दिल की सदा
दिया है दर्द जो तूने
दुखों के दिन
दूर तक जिसकी नज़र
धूप राहों में
पता नहीं
पहलू में उनके
पेड़ पौधा झील झरना
भरोसा करे किस पर
मुझको किनारा मिल गया
मुद्दत के बाद
मेरे मालिक
मेरे लिए
यह सुना है
यादों ने आज
ये दरिया
वफ़ा का गीत
वो इंसां भी
वो मुझसे आके मिलेगा
सितम जिसने किया मुझ पर
सुनामी के प्रति
सुरों में ताल में
हम बिखर भी गए
हर सितम हर ज़ुल्म
संकलन में-
अमलतास-
अमलतास बौराया है
शुभ दीपावली-
वहीं पे दीप जलेगा
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दीवाली हर बरस
कचनार के दिन-
जहाँ कचनार
होता है
नयनन में नंदलाल-
कन्हैया
फूले फूल कदंब-
कदंब
के पेड के पत्ते |
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किसी की शायरी
किसी की शायरी एहसास में जब डूब जाती है
किसी के सुर में ढलकर वो दुआएँ माँग लाती है
किसी शायर ने माना है ख़ुदा का हाथ है शायर
कलम उसकी ज़माने से अंधेरों को मिटाती है
किसी महफ़िल में होती है जहाँ भी हुस्न की चर्चा
ख़ुदा के नूर से जगमग वो महफ़िल जगमगाती है
किसी की मुस्कुराहट में झलकता है जो अपनापन
उसी से हौसला पाकर उदासी मुस्कुराती है
मुहब्बत करनेवालों से खफ़ा रहती है क्यों दुनिया
बिना मतलब वो उनकी राह में कांटे बिछाती है
किसी की आँख से 'घायल' छलकते हैं जहाँ आँसू
वहाँ के फूल में ख़ुशबू ख़ुदा के घर से आती है
१९ मार्च २०११
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