ज़मीं से आसमानों तक
ज़मीं से आसमानों तक नज़र मेरी जिधर जाए
तसव्वुर में उसे पा कर वहीं जा कर ठहर जाए
किसी के वास्ते खुशबू चुराती है हवा लेकिन
गुलों का ज़ोर क्या उस पर जहाँ चाहे बिखर जाए
किसी की याद में जीना मुक़द्दर में नहीं सबके
तमन्ना है कि हर लम्हा खय़ालों में गुज़र जाए
कभी खुलकर बिखर जाने की ज़िद पे ज़ुल्फ़ जब आए
लगे ऐसा कि बिन मौसम घटा घिरकर ठहर जाए
कसम से आज तक देखी न मैंने सादगी उतनी
बिना आहट कि ये चुपचाप जो दिल में उतर जाए
ठिकाना है नहीं `घायल' जवानी ज़िंदगानी का
मगर इक आसरा उसका ग़ज़ल में वो सँवर जाए
१८
फरवरी २००८
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