आँखों से जाने उसने क्या
आँखों से जाने उसने क्या मुझको पिला दिया
मुझको तो यह लगने लगा कि बुत बना दिया
मैं था गली का ठीकरा सबके लिए मगर
पलकों पे उसने प्यार से मुझको बिठा दिया
मैं खुद तरसता था कभी खुशबू के वास्ते
उसके तसव्वुर ने मुझे गुलशन बना दिया
मुझको मयस्सर थी नहीं मुस्कान की खुशी
उसकी हँसी ने फिर मुझे हँसना सिखा दिया
उसके एहसानों का बदला जांनिसारी है मगर
आज तक उसने नहीं मौका मुझे इसका दिया
मेरे शेरों में है 'घायल' वो मेरे अल्फ़ाज़ में
मैं तो शायर था नहीं उसने बना दिया
१८
फरवरी २००८
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