जब से दिलों का फ़ासला
जबसे दिलों का फ़ासला बढ़ता चला गया
रक़बा मकान-ओ-खेत का घटता चला गया
गाँवों में जबसे आ गई बिजली की रोशनी
आँगन का घर से वास्ता उठता चला गया
दुनिया सिमट के आ गई जबसे दलान में
नामोनिशां जज़्बात का मिटता चला गया
लालच के रोडे बिछ गए रिश्तों की राह में
तलवा हर इक इंसान का छिलता चला गया
घर की हवा घायल हुई पंखे की धार से
साँसों में ज़हर साँस का घुलता चला गया
जंगल पहाड़ काटकर हमने ये क्या किया
धरती से आज आसमाँ कटता चला गया
फूलों में अब खुशबू नहीं 'घायल' पराग भी
तितली उड़ी भौंरा उड़ा उड़ता चला गया
१ जून २००७ |