आदमी
की भीड़ में
आदमी की भीड़ में अब खो रहा है आदमी
आँख अपनी खोलकर भी सो रहा है आदमी
गाँव-शहरों में वफ़ा के फूल अब कैसे खिले
नफ़रतों के बीज उनमें बो रहा है आदमी
आज चिड़ियों को चहकने की मनाही है जहाँ
हाथ अपने आँसुओं से धो रहा है आदमी
जानवर को जानवर हम क्यों कहें कैसे कहे
जानवर तो आज खुद ही हो रहा है आदमी
ज्ञान कहते थे जिसे विज्ञान जबसे हो गया
सैंकड़ों मन बोझ ग़म का ढो रहा है आदमी
एक लम्हे की खुशी 'घायल' ख़रीदी किसलिए
ज़िंदगी भर की खुशी को रो रहा है आदमी
16 नवंबर 2007
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