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करिश्मा
किसी कविता को
भरोसा करे किस पर
ये दरिया
वो मुझसे आके मिलेगा

अंजुमन में—
अगर बढ़ेगी दिल की दूरी
आँखों से जाने उसने क्या
आदमी की भीड़ मे
आदमी को और भला

आपसे कुछ कहें
उदासी के समंदर को
उसके सीने मे
कभी जो बंद कीं आँखें
कभी बादल कभी बिजली
किसी भी बात से
कुछ न करते बना
खुद में रहने की आदत
गया कोई
चाँदनी को क्या हुआ
जब से दिलों का फ़ासला
ज़मीं से आसमानों तक
जो पत्थर काटकर
जो पत्थर तुमने मारा था मुझे
दर्द बनकर आईना
दिल की सदा
दिया है दर्द जो तूने
दुखों के दिन
दूर तक जिसकी नज़र
धूप राहों में
पता नही
पहलू में उनके
पेड़ पौधा झील झरना
मुझको किनारा मिल गया
मुद्दत के बाद
मेरे मालिक
मेरे लिए
यह सुना है
यादों ने आज
वफ़ा का गीत
वो इंसां भी
सितम जिसने किया मुझ पर
सुनामी के प्रति
सुरों में ताल में
हम बिखर भी गए
हर सितम हर ज़ुल्म

संकलन में-
शुभ दीपावली- वहीं पे दीप जलेगा

 

आदमी की भीड़ में

आदमी की भीड़ में अब खो रहा है आदमी
आँख अपनी खोलकर भी सो रहा है आदमी

गाँव-शहरों में वफ़ा के फूल अब कैसे खिले
नफ़रतों के बीज उनमें बो रहा है आदमी

आज चिड़ियों को चहकने की मनाही है जहाँ
हाथ अपने आँसुओं से धो रहा है आदमी

जानवर को जानवर हम क्यों कहें कैसे कहे
जानवर तो आज खुद ही हो रहा है आदमी

ज्ञान कहते थे जिसे विज्ञान जबसे हो गया
सैंकड़ों मन बोझ ग़म का ढो रहा है आदमी

एक लम्हे की खुशी 'घायल' ख़रीदी किसलिए
ज़िंदगी भर की खुशी को रो रहा है आदमी

16 नवंबर 2007

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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