उसके सीने में
उसके सीने में दरिया तो था इक मगर
प्यास उसकी बुझाती रही तिश्नगी
जो भी लिखता उसे गुनगुनाता रहा
जो भी मिलता उसी को सुनाता रहा
उसने जो भी लिखा तो लिखा इस तरह
जब मरा तो उसे मिल गई ज़िंदगी
नाम पूछा तो उसने बताया नहीं
उसने एहसान अपना जताया नहीं
उसके शब्दों से रोशन अंधेरा हुआ
उसके सुर को सजाती रही सादगी
उसके जीने में, लिखने में अंतर न था
कोई ओढ़ना उसे कोई बिस्तर न था
भूख भी उससे नज़रें चुराती रही
मौत भी उसकी करती रही बंदगी
गीत सुनकर पखेरू चहकते रहे
फूल खुशबू बिना भी महकते रहे
वह नहीं है ज़माने में तो क्या हुआ
इन हवाओं में है उसकी मौजूदगी
24 मार्च 2007
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