दर्द बनकर आईना
दर्द बनकर आईना क्या-क्या दिखा देगा मुझे
था पता मुझको नहीं क्या-क्या बना देगा मुझे
ख़्वाब में भी जो हक़ीक़त की तरह लगता रहा
आज लगता है मगर वो भी भुला देगा मुझे
दुख सताता है मुझे कितना सताएगा भला
एक दिन आख़िर थकेगा तो दुआ देगा मुझे
सुख में जो मैंने गुज़ारे चार दिन तो यों लगा
बेवफ़ा तो बेवफ़ा है यह दग़ा देगा मुझे
आँख में आँसू किसी की देखना मुमकिन नहीं
आँख भर जो देख लेगा तो रुला देगा मुझे
जिसने शीशे की तरह 'घायल' मुझे बिखरा दिया
फिर भी लगता है कि वो फिर से सजा देगा मुझे
२४ मार्च २००८
|