पता नहीं
पता नहीं कि वो दिल में समा गया कैसे
ज़रा-सी देर में अपना बना गया कैसे
हवा खिलाफ़ थी मेरे खिलाफ़ थी दुनिया
मेरी पसंद के नग़मा सुना गया कैसे
झुकी निगाह से उसने ज़रा-सा देखा था
मेरे वजूद पे इतना वो छा गया कैसे
जहाँ वो मुझसे मिला था अभी अँधेरा है
वफ़ा का दीप जलाकर बुझा गया कैसे
हज़ार लोग थे 'घायल' मगर न जाने वो
मुझी को मुझसे चुराकर चला गया कैसे
1 जून 2007 |