कुछ न करते बना
कुछ न करते बना अपनी माँ के लिए
जो रवाना हुई आसमाँ के लिए
मेरी माँ ने जो मुझ पर किए हैं क़रम
वो करम हैं मेरे गुलिस्ताँ के लिए
मेरे आँसू थे उसको गवारा नहीं
आज आँसू मेरे दास्ताँ के लिए
दर्द से मैं तड़पने लगा जब कभी
वो दुआ बन गई मेरी जाँ के लिए
मेरी ख़ातिर सहे थे जो उसने सितम
दायरे में नहीं वो ज़ुबां के लिए
माँ से बढ़कर कोई इस जहाँ में नहीं
ज़िंदगी है उसी मेहरबाँ के लिए
मेरी आँखों ने 'घायल' किए सौ जतन
बादलों में उसी के निशां के लिए
२४ मार्च २००८
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