बदली है दुनिया
लाख बदली है दुनिया मगर हम नहीं
आज भी हममें हैं ख़ामियाँ कम नहीं
अब मुहब्बत के दिन जो हवा हो गये
इसलिये आँख होती कभी नम नहीं
पत्थरों को तो हम पूजते हैं मगर
आदमी से क्यों नफ़्रत हुई कम नहीं
पहले जो कुछ भी लिक्खा गया है यहाँ
सारी बातों में है अब कोई दम नहीं
फूल से आज ख़ुशबू है रूठी हुई
डालियाँ भी हैं सहमी हुई कम नहीं
लोग वादे पे वादे किये जा रहे
पूरे करने का लेकिन है दमख़म नहीं
झूठ को बोलता है वो सच की तरह
उसको लगता है रुत्बा हुआ कम नहीं
२ जून २०१४
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