तुम न आए
गया आज का दिन भी और तुम न आए।
तुम्हारे बिना साजना कुछ न भाए।
किसे मैं सुनाऊँ व्यथा की कथा ये,
कि है अजनबी शहर सब हैं पराए।
सदा तुमको देते हैं चीड़ों के जंगल,
तुम्हें याद करते चिनारों के साए।
मेरे आँसू कौन अपनी आँखों में लेगा,
कोई पत्थरों को कहाँ तक मनाए।
तेरी याद के दीप हों ग़र न रोशन,
अंधेरों में ये ज़िंदगी डूब जाए।
२४ दिसंबर २००४
|