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अनुभूति में राकेश कौशिक की
रचनाएँ -

गीतों में-
अब मुझको आवाज़ न देना
आशा दीप
एक दीपक जल गया है
और बरस थोड़ा सा बादल
किसे मन की बात कह लूँ
कोहरा ये कब हटेगा
नव जीवन
बादलों तुम आ गए फिर
मन में छाया घोर अंधेरा
मेरा शहर बदल गया
मेरा वतन बदल गया
समय काटे नहीं कटता

स्वप्न में कल आई थी तुम

हम बंजारे
हम मछुआरे
है कठिन पथ

अंजुमन में—
इंसान बदल जाएगा
कब से खड़े हैं
कौन कहता है देश जागा है
गीत मेरे हैं तुम्हारे
जाने क्यों
जो इधर था
जो न झुकते थे
जो फ़ोर्स
तुम नज़र से दूर हो
तुमने मुझे पुकारा होगा
मिट्टी उड़ती है
मेरी धरती के लोगों
यदि आज है दुख
सब का सब कुछ
हर सहारा
हवाओं में

कविताओं में —
ऋतुचक्र
तुम न आए
भटके भटके हुए
महानगर
सूरज का इंतज़ार

संकलन में-
प्रेम गीत-आज उनसे
जग का मेला-मेरा भैया

 

मेरा वतन बदल गया

मेरा वतन बदल गया।
मेरा चमन बदल गया।

जहाँ अमन का राज था वहाँ हैं ख़ूँ की होलियाँ,
कहीं धमाके बम के हैं, कहीं चले हैं गोलियाँ,
किसी शहर में बंदा है, कहीं लगा है कर्फ़्यू,
ये कौन सबके सोचने के ढंग को बदल गया।
मेरा वतन बदल गया।
मेरा चमन बदल गया।

घने-घने जो साये थे चिनार के, कहाँ गए,
वो चीड़ के दरख़्त देवदार के, कहाँ गए,
हरे थे ताज परबतों के सर पे कौन ले गया,
ये कौन सारे मौसमों के रंग को बदल गया।
मेरा वतन बदल गया।
मेरा चमन बदल गया।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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