किसे मन की बात कह लूँ
किसे मन की बात कह लूँ।
स्वार्थी हैं लोग सारे,
दुख में करते हैं किनारे,
नहीं पत्थर पिघलते मैं अनगिनत आघात सह लूँ।
किसे मन की बात कह लूँ।
कहीं तो हो ठौर कोई,
साथ तो हो और कोई,
कुछ पलों के लिए ही जीवन सुरों के साथ बह लूँ।
किसे मन की बात कह लूँ।
छाये हैं पथ में अँधेरे,
हुए घायल पाँव मेरे,
नहीं कोई पड़ाव ऐसा जहाँ मैं इक रात रह लूँ।
किसे मन की बात कह लूँ।
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