है कठिन पथ
है कठिन पथ क्या इसी से त्याग दूँ चलने का निश्चय।
रोकने को विश्व सारा है खड़ा लेकर प्रलोभन,
कह रहा आगे बढ़ो मत, भोग लो धन, रूप, यौवन,
निर्बलों पर वार इन सब के सफल होते रहे हैं,
आज लेकिन सूर्य की किरणों के सम्मुख है सघन वन,
कवच ओढ़े शांति औ' धीरज का मैं रण में खड़ा हूँ,
आत्म-बल, विश्वास ले, इस समर में होगी मेरी जय।
है कठिन पथ क्या इसी से त्याग दूँ चलने का निश्चय।
जानता हूँ बढ़ा आगे तो करेगा मग तिरस्कृत,
बनूँगा मैं अनादर का पात्र, होऊँगा उपेक्षित,
और एकाकी मुझे चलना पड़ेगा राह अपनी,
बहुत संभव है मुझे संसार यह कर दे बहिष्कृत,
किंतु मन में वज्र-सा संकल्प ले कर मैं चला हूँ
मृत्यु, आपत्ति, विरोधों का नहीं मुझको तनिक भय।
है कठिन पथ क्या इसी से त्याग दूँ चलने का निश्चय।
मूल्य भौतिक सफलता से जग सभी का आँकता है,
देखता है चमक बाहर की, न भीतर झाँकता है,
असाधारण कुछ करें जो भी उन्हें कहता है पागल,
ध्रुव सफल हों जो उन्हें आकाश में फिर टाँकता है,
शौर्य-गाथा मेरी भी स्वर्णाक्षरों से वह लिखेगा,
युगों तक न कर सकेगा काल मेरी कीर्ति का क्षय।
है कठिन पथ क्या इसी से त्याग दूँ चलने का निश्चय।
बुलबुला हूँ एक दिन आनंद का सागर बनूँगा,
सृष्टि की सब तरंगों का पान मन में मैं करूँगा,
उस दिवस छायाएँ माया-पट की मिथ्या लुप्त होंगी,
काल का और देह का इस अतिक्रमण मैं कर सकूँगा,
ज्ञान, ज्ञाता, ज्ञेय एक आकार हो जाएँगे उस दिन,
सर्वव्यापी, शाश्वत सत्ता में मैं हो जाऊँगा लय।
है कठिन पथ क्या इसी से त्याग दूँ चलने का निश्चय।
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