अब मुझको आवाज़ न देना।
भूल रहा हूँ बीती बातें,
मुस्काते दिन, गाती रातें,
फिर मेरे हाथों में दिल के इकतारे का साज़ न देना।
अब मुझको आवाज़ न देना।
मरुथल-सा सूना मेरा मन,
बरसे कौन यहाँ बादल बन,
मेरे होंठों की ख़ामोशी को फिर से अल्फ़ाज़ न देना।
अब मुझको आवाज़ न देना।
सबको फूल कहाँ मिलते हैं,
चाक सभी के क्या सिलते हैं,
जीने दो जैसे जीते हैं कोई नया अंदाज़ न देना।
अब मुझको आवाज़ न देना।
9 मार्च 2007
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