और बरस थोड़ा-सा बादल
और बरस थोड़ा-सा बादल।
तप्त अवनि हो जाए शीतल,
सरिता शुष्क बह चले कल-कल,
चातक की हो सफल साधना, त्राण मिलें प्राणों को पागल।
और बरस थोड़ा-सा बादल।
काग़ज़ की नौकाएँ चलाएँ,
बच्चे थोड़ा और नहायें,
''बरसो राम धड़ाके से'' ये गाए थोड़ा हो कोलाहल।
और बरस थोड़ा-सा बादल।
शरसा चटियल मैदानों को,
उद्यानों को, खलिहानों को,
प्रकृति झूमे नगरों, ग्रामों में, हर्षायें परबत, अंचल।
और बरस थोड़ा-सा बादल।
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