कौन कहता है देश
जागा है
जानवर भूल गए जंगलीपन,
आदमी जंगलों को भागा है।
लोग तो सो रहे हैं सड़कों पर,
आप कहते हैं देश जागा है।
कौन कहता है देश जागा है।
हद में गिरजे की बँध गया कोई,
ले के किरपाण तन गया कोई।
आपके दिल में बसी है काशी,
उनकी नज़रों में सिर्फ़ क़ाबा है।
कौन कहता है देश जागा है।
जिस्म पर मल के राख सपनों की,
बन गए एकलव्य संन्यासी।
योग्यता मापती है सड़कों को,
और भरत तख़्त पर बिराजा है।
कौन कहता है देश जागा है।
लोग कतरा रहे हैं अपनों से,
दिन पुराने हुए हैं सपनों से,
एक आँधी चली है नफ़रत की,
प्यार का टूट गया धागा है।
कौन कहता है देश जागा है।
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